रानी लक्ष्मीबाई जीवन परिचय :

नाम:मणिकर्णिका ताम्बे [विवाह के पश्चात् लक्ष्मीबाई नेवलेकर]

जन्म: सन 1828

मृत्यु: सन 1858 [29 वर्ष]

पिता: मोरोपंत ताम्बे

माता: भागीरथी बाई

पति: झाँसी नरेश महाराज गंगाधर रावनेवलेकर

संतान: दामोदर राव, आनंद राव [दत्तक पुत्र]

घराना: मराठा साम्राज्य

उल्लेखनीय कार्य: सन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम

रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का परिचय

रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मणिकर्णिका था, उनके बचपन में उन्हें प्यार से ‘मनु’ कह कर बुलाया जाता था। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में मराठी परिवार में हुआ था। वे देशभक्ति, बहादुरी, और सम्मान के प्रतीक मानी जाती हैं। उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और वे मराठा बाजीराव की सेवा में रहते थे, जबकि उनकी माता एक विद्वान महिला थी। छोटी उम्र में ही लक्ष्मीबाई ने अपनी माँ को खो दिया था। उसके बाद, उनके पिता ने उनका पालन-पोषण किया, और उनके बचपन से ही उनके पिताजी ने हाथियों और घोड़ों की सवारी और हथियारों का उपयोग सिखाया था। रानी लक्ष्मीबाई नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ पली बढ़ी थीं।

झांसी का किला

झांसी किले का इतिहास झांसी किले की नींव करीब कई साल पहले, 1602 में, ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव द्वारा रखी गई थी। यह दिलचस्पी की बात है कि ओरछा, जो मध्यप्रदेश में एक कस्बा है, झांसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बंगरा पहाड़ी पर फैले 15 एकड़ क्षेत्र में बना यह विशालकाय किला पूरी तरह से 11 सालों में तैयार हुआ और यह 1613 में पूरा हुआ। इस किले में 22 बुर्ज हैं और उत्तर और उत्तर-पश्चिम दिशाओं में खाईए हैं, जो आक्रमणकारियों को रोकने का काम करती हैं। इसके कारण इस किले की दुनियाभर में बड़ी प्रशंसा है। पहले, झांसी ओरछा नरेश के शासनकाल में आती थी, बाद में मराठा पेशवाओं के अधीन आई। मराठा नरेश गंगाधर राव से विवाह के बाद, मणिकर्णिका को लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता था। उनके बलिदान और साहस की कहानी अब भी इस किले की दीवारों पर बसी है और उनकी मान्यता उसके इतिहास में चमकती है।

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रानी लक्ष्मीबाई की विशेषताएँ

रानी लक्ष्मीबाई में कई विशेषताएँ थीं, जैसे:

  • नियमित योगाभ्यास करना,
  • धार्मिक कार्यों में रुचि,
  • सैन्य कार्यों में रुचि और माहिरता,
  • उन्हें घोड़ों की अच्छी परख थी,
  • रानी अपने प्रजा का संपूर्ण ध्यान रखती थी,
  • गुनाहगारों को उचित सजा देने की भी साहस रखती थी।

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह

झांसी के महाराज राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। विवाह के बाद मणिकर्णिका का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई से जाना जाने लगा। फिर वह झांसी की रानी कहलाई। 1851 में उनके बेटे का जन्म हुआ था, परंतु 4 महीनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। कुछ समय बाद झांसी के महाराजा ने दत्तक (आनंद राव) पुत्र को अपनाया।

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम

रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े का नाम महल और मंदिर के बीच जाते समय रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर जाती थी या फिर कभी कभी पालकी द्वारा भी जाती थी। सारंगी, पवन और बादल उनके घोड़े में शामिल थे। 1858 में इतिहास के अनुसार यह माना गया है कि किले की तरफ भागते समय रानी लक्ष्मीबाई बादल पर सवार थी।

रानी लक्ष्मी बाई के पति की मृत्यु

रानी लक्ष्मीबाई के पति की मृत्यु 2 साल बाद, सन 1853 में, उनके पति की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी। उनके बेटे और पति की मृत्यु के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी। उनकी उम्र उस समय मात्र 25 वर्ष थी, लेकिन उन्होंने सारी जिम्मेदारियों को अपने ऊपर ले लिया था।

रानी लक्ष्मी का उत्तराधिकारी बनना –

21 नवम्बर, 1853 को महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गई, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी। लेकिन रानी ने अपना धैर्य और साहस नहीं हारा, और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण उन्होंने स्वयं को राज्य के काज में ले लिया। उस समय की ब्रिटिश सरकार के गवर्नर लार्ड डलहौजी थे।

उस समय एक नियम था कि शासन का उत्तराधिकार तभी होगा जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, अगर पुत्र नहीं हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी को मिल जाएगा और राज्य परिवार को पेंशन दी जाएगी। लार्ड डलहौजी का यह मानना था कि महाराज गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई के कोई आवासीय पुत्र नहीं हैं, और उन्होंने इस बच्चे को अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उसने यह दावा किया कि महाराज गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई के किसी भी प्रकार के संतान नहीं हैं और उसने बच्चे को राज्य का अधिकारी नहीं बनाने के लिए कोशिश की। इस पर महारानी लक्ष्मीबाई ने लन्दन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया, लेकिन उनका मुकदमा खारिज कर दिया गया। उसके साथ ही यह आदेश भी दिया गया कि महारानी, झाँसी किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में रहे, इसके बदले में उन्हें 60,000 रुपये की पेंशन दी जाएगी। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी झाँसी को नहीं देने का निर्णय लिया। वे अपनी झाँसी की रक्षा करना चाहती थी, और उन्होंने सेना का संगठन किया।

संघर्ष की शुरुआत:

मेरी झाँसी नहीं दूंगी’: 7 मार्च, 1854 को ब्रिटिश सरकार ने एक सरकारी गजट जारी किया, जिसके अनुसार झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय का आदेश दिया गया था। रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश अफसर एलिस द्वारा इस आदेश के प्राप्त होने पर उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा ‘मेरी झाँसी नहीं दूंगी’ और अब झाँसी विद्रोह का केंद्रीय बिंदु बन गया। रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ अन्य राज्यों की सहायता से एक सेना तैयार की, जिसमें केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी शामिल थीं; उन्हें युद्ध में लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था। उनकी सेना में अनेक महारथी भी थे, जैसे: गुलाम खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुन्दर-मुन्दर, काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोतीबाई, दीवान रघुनाथ सिंह, दीवान जवाहर सिंह, आदि। उनकी सेना में लगभग 14,000 सैनिक थे।

10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ थीं, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी। इससे हिन्दू धर्म की भावनाओं पर ठेस पड़ी और इस कारण यह विद्रोह देशभर में फैल गया। इस विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्होंने झाँसी को फिलहाल रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में छोड़ने का निर्णय लिया। इस दौरान सितंबर-अक्टूबर 1857 में रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पड़ोसी राज्यों ओरछा और दतिया के राजाओं के साथ संघर्ष किया, क्योंकि उन्होंने झाँसी पर आक्रमण किया था।

इसके कुछ समय बाद मार्च 1858 में अंग्रेज सेनाने सर ह्यू रोज के नेतृत्व में झाँसी पर हमला किया और तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति से उन्हें परास्त किया और अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। कुछ समय बाद सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा।

युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेशवा, बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दाएँ गोपालपुर में एकत्रित हुए। रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सकें और इसी तरह रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर हमला किया। वहां उन्होंने ग्वालियर के महाराजा को परास्त किया और रणनीतिक तरीकों से ग्वालियर के किले पर विजय प्राप्त की और ग्वालियर का राज्य पेशवा को सौंप दिया।

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु (Rani Laxmi Bai Death):

17 जून, 1858 को, किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युद्ध लड़ते समय, रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के पूर्वी क्षेत्र का मोर्चा संभाला। इस युद्ध में, उनकी सेविकाएँ भी शामिल थीं और पुरुषों की पोषण करने के साथ ही वे वीरता से युद्ध कर रही थीं। इस युद्ध के दौरान, उन्होंने ‘राजरत्न’ नामक घोड़े पर सवार नहीं किया था, और यह घोड़ा नया था, जो नदी के पार नहीं कूद सकता था। रानी ने इस स्थिति को समझते हुए वीरता के साथ युद्ध किया। उनकी घायली थी, और वे घोड़े से गिर पड़ीं। क्योंकि वे पुरुषों की पोषण में थीं, उन्हें अंग्रेज सैनिकों ने पहचान नहीं पाया और उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद, उनके विश्वासपात्र सैनिक ने उन्हें गंगादास मठ में ले जाकर उन्हें गंगाजल दिया। तब रानी ने अपनी आखिरी इच्छा जाहिर की कि ‘कोई भी अंग्रेज अफसर उनकी मृत देह को नहीं छू सकता।’ इस प्रकार, उन्होंने कोटा की सराय के पास ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में अपनी वीरगति प्राप्त की।

इसके बाद, 3 दिन बाद ही ब्रिटिश सरकार ने ग्वालियर को अपने नियंत्रण में लिया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार किया गया और उन्हें फांसी की सजा दी गई।

रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश सरकार द्वारा पेंशन दी गई, लेकिन उन्हें उनका उत्तराधिकार कभी नहीं मिला। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय अंग्रेज सरकार के सामने आकर्षित करने और अपने अधिकार प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया। उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को हुई, जब उनकी आयु 58 वर्ष थी।

इस प्रकार, वे अपनी जीवनधारा के लिए तकदीर से आगे बढ़कर देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी बहादुरी की मिसाल प्रस्तुत करने में समर्पित हुईं।

झांसी की रानी की कविता

सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई कविता ‘झांसी की रानी’ बहुत ही प्रसिद्ध है। यह कविता झांसी की रानी के देशभक्ति और वीरता को सुंदरता से व्यक्त करती है।

“बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।”

इस पंक्ति में झांसी की रानी की वीरता और बलिदान की गाथा को व्यक्त किया गया है, जिससे वह एक शक्तिशाली और साहसी महिला के रूप में प्रकट होती है।

Frequently Asked Questions and Answers
Q- रानी लक्ष्मी बाईका जन्म कब और कहां हुआ था?
Ans- रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ।

Q- रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यृ कब हुई?
Ans- रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यृ 18 जून 1858 को ग्वालियर हुई।

Q- रानी लक्ष्मी बाई को किसने हराया था?
Ans- ह्यू रोज ने रानी लक्ष्मी बाई को हराया था।

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