कैप्टन विक्रम बत्रा की जीवनी, कहानी, निबंध, मूवी, पुण्यतिथि, बलिदान दिवस, कारगिल युद्ध, कोट्स [कैप्टन विक्रम बत्रा की जीवनी, बायोपिक मूवी इन हिंदी] (पत्नी, मृत्यु, प्रेमिका, विचित्रिता, भाई, डिंपल चीमा, कारगिल कहानी, निबंध)

कैप्टन विक्रम बत्रा जन्म एवं परिवार (जन्म और परिवार)

पिता का नाम: गिरधारी लाल बत्रा (सरकारी स्कूल में प्राध्यापक)

माता का नाम: कमल कांता बत्रा (एक स्कूल टीचर)

भाई: विशाल बत्रा

बहनें: सीमा और नूतन

पत्नी: अब तक नहीं है

मंगेतर (गर्लफ्रेंड): डिंपल चीमा (1995 – विक्रम की मृत्यु तक)

कैप्टेन विक्रम बत्रा की जीवनी, कहानी, निबंध (बायोग्राफी, निबंध, कहानी)
पूरा नाम
: कैप्टेन विक्रम बत्रा
निकनेम: शेरशाह
पेशा: आर्मी ऑफिसर
प्रसिद्धि: 1999 की कारगिल युद्ध में बलिदान देने के लिए ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित
सर्विस / ब्रांच: भारतीय आर्मी
रैंक: कैप्टेन
सर्विस के साल: सन 1996 से 1999 तक
यूनिट: 13 JAK RIF
जन्म: 9 सितंबर, 1974
जन्म स्थान: पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत
मृत्यु: 7 जुलाई, 1999
मृत्यु स्थान: सरहद क्षेत्र, पॉइंट 4875 कॉम्प्लेक्स, कारगिल, जम्मू और कश्मीर, भारत
उम्र: 24 साल
मृत्यु कारण: शहादत
राष्ट्रीयता: हिन्दू
गृहनगर: पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत
धर्म: हिन्दू
जाति: अज्ञात
वैवाहिक स्थिति: अविवाहित

हम अपने जीवन में बॉलीवुड सेलिब्रिटी और बड़े-बड़े व्यापारिक व्यक्तियों के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं और उनकी जानकारी भी रखते हैं। परंतु कभी कभी हमें उन लोगों के नाम याद नहीं रहते जो सीमा पर वीरता और साहस से भरपूर रूप से लड़ते हैं और पूरे देश की सुरक्षा करते हैं। आज हम एक ऐसे वीर योद्धा की प्रेरणादायक कहानी के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने शौर्य और नेतृत्व के साथ देश का मान बढ़ाया। उन वीर योद्धा का नाम कैप्टन विक्रम बत्रा था। आइए, हम उनके जीवन के महत्वपूर्ण पदों पर जाकर उनके रोचक तथ्यों को जानते हैं।

बहुत ही कम लोग होते हैं जो अपने देश के लिए अपनी जान को खतरे में डालने के लिए तैयार रहते हैं। विक्रम बत्रा भी उनमें से एक थे। उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर गांव में हुआ था। उनके पिता सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे और मां एक स्कूल टीचर थीं।

शिक्षा के क्षेत्र में, विक्रम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल से पूरी की और फिर केंद्रीय विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। उन्होंने अखिल भारतीय केवीएस में भाई के साथ नागरिकों के टेबल टेनिस स्कूल का प्रतिष्ठान बनाया और उसमें जीत हासिल की। कॉलेज के दौरान, उन्होंने एनसीसी एयर विंग में भाग लिया और पिंजौर एयरफील्ड और फ्लाइंग क्लब में 40 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने सी सर्टिफिकेट की प्राप्ति के बाद एनसीसी में कैप्टन के रूप में प्रवृत्त हो गई।

विक्रम बत्रा ने 1994 में गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया जब उन्होंने एनसीसी कैडेट के रूप में भाग लिया। यह समय था जब उनकी देशभक्ति की भावना ने उनके दिल में जगह बनाई और उन्हें भारतीय सेना में शामिल होने की उम्मीद थी। उन्होंने इस इरादे के साथ अपने माता-पिता को सूचित किया और उनका समर्थन प्राप्त किया। इसके परिणामस्वरूप, 1996 में, उन्हें सेवा चयन बोर्ड इलाहाबाद से चयन मिला, जहां पर 35 उम्मीदवारों के साथ उनका चयन हुआ। इसके बाद, उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी में प्रवेश किया।

1996 में, विक्रम बत्रा ने मानेकशॉ बटालियन में सेना की सेवा में शामिल हो गए। उन्होंने 1997 में 19 महीने की प्रशिक्षण के बाद सेना के लिए स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनके आगे की पोस्टिंग ने उन्हें बारामूला जिले, सोपोर क्षेत्र में भेज दिया, जहां आतंकवादी गतिविधियों की बहुतायत थी। इसके पश्चात्, उन्हें मध्यप्रदेश के महोव में 5 महीने की अवधि के लिए इन्फेंट्री स्कूल Mhow में भेजा गया ताकि वे अपने योग्यताओं को मजबूती से बढ़ा सकें। उसके बाद, उन्हें जम्मू और कश्मीर राइफल्स में तैनात किया गया, जहां से वे देश की सेवा करते रहे।

कैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी में, उनकी मंगेतर डिंपल चीमा भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कारगिल युद्ध से पहले, होली की छुट्टियों के दौरान, वे डिंपल से उनके पसंदीदा कैफे में मिले। उस समय, डिंपल ने विक्रम को याद दिलाया कि वे कारगिल युद्ध में अपनी सुरक्षा का ख्याल रखें। विक्रम ने या तो खुद को वीरता और सशस्त्र बलों के साथ दिखाने का निर्णय लिया, या फिर उन्होंने अपनी आंखें बंद करके तिरंगे में लिपट कर आने का निर्णय लिया

कैप्टन विक्रम बत्रा का कारगिल युद्ध में योगदान (कारगिल की कहानी) उनकी वीरता अत्यधिक थी, क्योंकि उन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी अवकाश पूरी करने के बाद, जब वे अपनी बटालियन के साथ सोपोर में वापस आए, उन्हें बटालियन को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश की ओर ले जाने का कार्य दिया गया। विक्रम बत्रा ने पहले जम्मू में आपत्तिजनकों को सफलतापूर्वक साफ किया था, जबकि उनकी बटालियन 8 माउंटेन डिवीजन के 192 माउंटेन ब्रिगेड के तहत थी। इसलिए, उन्हें और उनकी बटालियन को वहां से आगे बढ़ने का आदेश दिया गया।

पाकिस्तान सेना ने भारतीय सेना के खिलाफ सेक्टर में मजबूत कब्जा जमाया था, जिसमें स्वचालित हथियारों का प्रबलीकरण किया गया था। कारगिल युद्ध के दौरान, 20 जून 1999 को कमांडर डेल्टा कंपनी के कैप्टन विक्रम बत्रा को पॉइंट 5140 पर ऑपरेशन विजय के तहत हमला करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पूर्वी दिशा से उन्होंने अपनी पूरी कंपनी के साथ आक्रमण किया और बिना किसी संकेत के शत्रु पर हमला किया और उनके क्षेत्र में प्रवेश किया। अपनी दल को पुनर्गठित करके, उन्होंने शत्रु के क्षेत्र में और हमला करने के लिए तैयार हो गए।

उस समय, कैप्टन विक्रम बत्रा अपनी दल की नेतृत्व कर रहे थे और महान निडरता के साथ उन्होंने शत्रु के क्षेत्र में आक्रमण किया। उन्होंने हमले के दौरान 4 दुश्मनों को मार गिराया। शत्रु का क्षेत्र कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने शत्रुओं को पराजित किया और उनके रेडियो स्टेशन पर अपनी जीत की सूचना प्रस्तुत की।

कैप्टन विक्रम बत्रा की बलिदानी हरकत के बाद, 7 जुलाई 1999 को पॉइंट 4875 को अपने कब्जे में लेने के लिए अभियान शुरू हुआ, और उसे आगे बढ़ने का कार्य दिया गया। यह अभियान कठिन रास्ते के कारण चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि दोनों ओर से ढलानें थीं, और एकमात्र मार्ग था जो दुर्गम हथियारों द्वारा आवरण किया गया था। इन चुनौतियों के बावजूद, कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने पॉइंट ब्लैक रेंज में पांच दुश्मनों को मार गिराया।

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कैप्टन विक्रम बत्रा की बलिदान और उनकी मृत्यु कारगिल युद्ध के दौरान, विक्रम बत्रा को गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे लड़ते रहे और दुश्मन पर ग्रेनेड फेंके। उनके फेंके गए ग्रेनेड से दुश्मन का पूरा क्षेत्र नष्ट हो गया था और सभी दुश्मन समर्थनों के बावजूद मारे गए थे। गंभीर चोटों के बावजूद, विक्रम ने अपनी दल को प्रेरित किया और दुश्मन पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि, उनकी गंभीर चोटें और भारी बंदूकबाजी के कारण, उन्होंने आखिरकार युद्धभूमि पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इस तरह, उन्होंने अपने देश के लिए अपनी आखरी सांस तक लड़ते रहे।

कैप्टन विक्रम बत्रा की फिल्म में प्रस्तुति 2013 में, आपने बॉलीवुड फिल्म “एलओसी कारगिल” देखी होगी, जो कारगिल संघर्ष पर आधारित थी। इस फिल्म का उद्घाटन विक्रम बत्रा के महत्वपूर्ण किरदार को अभिषेक बच्चन ने किया था।

कैप्टन विक्रम बत्रा की धरोहर उनके शौर्यपूर्ण क्रियाकलापों की पहचान के लिए, पॉइंट 4785 को उनकी याद में ‘बत्रा टॉप’ के नाम से संबोधित किया गया। उनकी शौर्यगाथा की सराहना में, जबलपुर में एक कैंटोनमेंट को ‘विक्रम बत्रा एंक्लेव’ के नाम से जाना जाता है। उनकी वीरता को सम्मानित करते हुए, इलाहाबाद में एक हॉल का नाम ‘विक्रम बत्रा ब्लॉक’ रखा गया।

विक्रम बत्रा द्वारा दिखाए गए महान कौशल के कारण, एक इमारत चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में उनकी और उनकी टीम के शौर्य की याद में बनाई गई है। 2019 में, सम्मानित करते हुए, दिल्ली के मुबारक चौक और उसके फ्लाईओवर के नाम को ‘शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा’ में बदल दिया गया। कैप्टेन विक्रम बत्रा के पुरस्कार और उपलब्धियां उनके देश के लिए युद्ध में दिखाए गए शौर्य के कारण, उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।”


Frequently Asked Question and Answers :-

Q: कैप्टेन विक्रम बत्रा कौन थे?

उत्तर: वे एक भारतीय सेना के वीर अफसर थे।

Q: कैप्टेन विक्रम बत्रा की पत्नी कौन थी?

उत्तर: उनकी शादी नहीं हो चुकी थी, लेकिन उनकी मंगेतर डिंपल चीमा थी।

Q: क्या विक्रम बत्रा अब जीवित हैं?

उत्तर: नहीं, वे शहीद हो चुके हैं।

Q: विक्रम बत्रा की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर: उनकी मृत्यु 7 जुलाई, 1999 को हुई थी।

Q: विक्रम बत्रा के आखिरी शब्द क्या थे?

उत्तर: उनके आखिरी शब्द थे, “जय माता दी”।

Q: विक्रम बत्रा पर कोई फिल्म बन रही है क्या?

उत्तर: हां, विक्रम बत्रा पर एक फिल्म बन रही है।

Q: विक्रम बत्रा की बायोपिक फिल्म कौनसी है?

उत्तर: उनकी बायोपिक फिल्म का नाम ‘शेरशाह’ है।

Q: विक्रम बत्रा की कहानी क्या है?

उत्तर: उन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की बलिदान करके अपने साथियों की जानें बचाई थी।

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